पटना। दिल्ली विधानसभा चुनाव संपन्न होने के साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। चुनाव की तैयारियों के बीच राजनीतिक दलों ने अपने लिए मुख्यमंत्री चेहरे की तलाश भी शुरू कर दी है। बीजेपी+जेडीयू+एलजेपी वाले एनडीए खेमे में तय माना जा रहा है कि नीतीश कुमार एक बार फिर से मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे, लेकिन दूसरी तरफ महागठबंधन में सीएम फेस को लेकर अभी से खींचतान शुरू हो चुकी है।
बिहार के राजनीतिक गलियारे से खबर आई कि महागठबंधन के तीनों प्रमुख दलों ने अपने-अपने हिसाब से मुख्यमंत्री के चेहरे के लिए नाम सुझाए हैं। महागठबंधन के प्रमुख घटक दल आरजेडी ने पहले ही तेजस्वी यादव को सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया है। वहीं, कांग्रेस दलित समाज से आने वाली पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार पर दांव लगाने के पक्ष में है।
सीएम फेस घोषित करने की इस आपाधापी में आरएलएसपी ने वरिष्ठ समाजवादी नेता शरद यादव को मुख्यमंत्री फेस बनाने का सुझाव दिया है। आरएलएसपी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के इस सुझाव पर हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतन राम मांझी और वीआईपी पार्टी के मुखिया मुकेश साहनी ने भी मुहर लगाई है।
हालांकि ये तो वक्त बताएगा कि महागठबंधन सीएम फेस के तौर पर किसके चेहरे के साथ बिहार विधानसभा चुनाव में उतरती है। अभी तक की अटकलों के आधार पर अगर शरद यादव सीएम फेस बनते हैं तो महागठबंधन के नेताओं को इन पांच सवालों से रूबरू होना होगा।
महागठबंधन की असली ताकत क्या है, इस सवाल का जवाब एमवाई समीकरण है। यानी यादव और मुस्लिम वोटर ही हैं जो बिहार में महागठबंधन और इसके प्रमुख घटक दल आरजेडी को टिकाए हुए हैं। बिहार के जातीय समीकरण में यादव वोटरों की आबादी सबसे ज्यादा 14.4 फीसदी है। वहीं मुस्लिम वोटरों की संख्या 16.9 प्रतिशत है। 1990 के बाद से इन दोनों समाज पर लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार का असर रहा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शरद यादव के नाम पर मुस्लिम और यादव वोटर एकजुट रह पाएंगे? क्योंकि दूसरी तरफ एनडीए खेमे में बीजेपी जहां नित्यानंद राय, नंद किशोर यादव जैसे चेहरों को बड़े रोल देकर यादव समाज के वोटों को खींचने की पूरी कोशिश में जुटी है। वहीं जेडीयू कई मसलों पर बीजेपी का साथ नहीं देकर मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी करती रही है।
पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव के मुताबिक बिहार में करीब 5 करोड़ 80 हजार वोटर हैं, जिसमें 29 साल तक के युवा मतदाताओं की संख्या करीब 1 करोड़ 75 लाख है। इस हिसाब से बिहार में करीब 25 फीसदी युवा मतदाता हैं। शरद यादव इस वक्त 74 साल के हैं और इनकी पूरी राजनीति सामाजिक मुद्दों पर आधारित रही है। इनके भाषणों पर गौर करें तो उसके केंद्र में सामाजिक समानता, समरसता, धार्मिक एकता, आरक्षण, जागरूकता जैसे शब्द मिलेंगे। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों में कंप्यूटर, मोबाइल, स्किल, अमेरिका, यूरोप, सोशल मीडिया जैसे शब्द होते हैं। ऐसे में महागठबंधन के सामने बड़ी चुनौती होगी की वह 25 फीसदी युवाओं को शरद यादव के नाम पर अपने साथ कैसे खड़ा कर पाएगी।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि नीतीश कुमार इस वक्त बिहार के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। इसकी वजह भी साफ है। नीतीश कुमार करीब 14 साल से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। इस लंबी अवधि के दौरान बिहार का हरेश शख्स इनका नाम जानता ही है। बच्चों की दो-तीन पीढ़ी इन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर देखते हुए युवा हुई है।
दूसरी तरफ शरद यादव ज्यादातर दिल्ली की राजनीति करते रहे हैं। जेडीयू अध्यक्ष रहते हुए भी शरद के चेहरे के बजाय नीतीश के फेस का ही प्रचार किया जाता रहा। ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि नीतीश कुमार के कद के सामने शरद यादव खुद को कैसे स्थापित कर पाएंगे।